शास्ता मंडल : अनुशासन का अद्वितीय अंग
विद्यार्थी का अनुशासन से गहरा संबंध होता है। विद्यार्थी शब्द का अर्थ- विद्या+ अर्थी अर्थात विद्या का अर्जन करने वाला । छात्र जीवन संपूर्ण जीवन का स्वर्णिम प्रभात होता है। जिस प्रकार प्रभात का समय सुंदर एवं सुखद होता है इसी प्रकार छात्र जीवन भी आनंद से परिपूर्ण होता है।
अनुशासन अनु नामक उपसर्ग के साथ शासन शब्द से निर्मित है । जिसमें किसी अन्य का शासन ना होकर स्वयं का शासन होता है। अनुशासित विद्यार्थी ही विद्या अध्ययन कर सकता है । अनुशासन में रहकर सद्गुणों को अपने जीवन में उतारना ही विद्यार्थी का परम कर्तव्य होना चाहिए । अनुशासन और विदृता से परिपूर्ण व्यक्ति का हर जगह सम्मान होता है।
"राजा स्वदेशे पूज्यते , विद्वान सर्वत्र पूज्यते।।"
निषाद पुत्र धनुर्धर एकलव्य के अनुशासन एवं गुरु के प्रति श्रद्धा भाव से कोई भी विशिष्ट या साधारण जन अपरिचित नहीं है। कोई ग्रंथ ऐसा नहीं है जिसमें विद्वानों ने अनुशासन का महत्व नहीं बताया हो। अनुशासन वह महा पर्व है जिससे सहभागिता करके विद्यार्थी अपने जीवन को सफल बनाता है।
"आचाराल्लभते वृपा पुराचारल्लेत जियम्।
आचारात् कीर्ति मप्नोति पुरुष प्रन्यचह च।।"
अर्थात
अनुशासन के बिना जीवन असम्भव है।
सदाचारी ही दीर्घायु, धनवान एवं यशवान बनता है।।
वर्तमान समय में विद्यार्थियों में अनुशासन हीनता बढ़ने के प्रमुख कारणों में से प्रथम कारण विद्यार्थियों का राजनीति में प्रवेश , दूसरा चलचित्रों एवं प्रौद्योगिकी का गलत उपयोग है। जिससे फैशन परस्ती तथा आपराधिक कृत्यों में विद्यार्थियों की संलिप्तता दिन - प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
विद्यार्थियों में अनुशासन, चारित्रिक , नैतिक, आध्यात्मिक तथा जनतांत्रिक मूल्यों के विकास एवं संरक्षण हेतु महाविद्यालय में शास्ता-मंडल का गठन किया गया है । शास्ता-मंडल के सभी सदस्यों के सहयोग से अनुशासन और नैतिक मूल्यों की उत्कृष्टता के नए मापदंड स्थापित करने में मैं सफल हो रही हूँ। महाविद्यालय रूपी इस बगिया में अनुशासन और आदर्शों के पुष्पों को पुष्पित और पल्लवित करने में मैं स्वयं को सौभाग्यशाली समझती हूँ।
डॉ० संतोष चौधरी
मुख्यशास्ता
राजकीय महिला महाविद्यालय कोटा, सहारनपुर
chief proctor